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July 16, 2025

नई संभावनाओं का अंतरिक्ष

जब ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ल 26 जून को क्रू ड्रैगन कैप्सूल से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आइएसएस) में तैरते हुए दाखिल हुए, वे बहुत अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे. भारतीय वायु सेना में टेस्ट पायलट होने के बावजूद पृथ्वी की कक्षा में अपनी पहली उड़ान पर जाने वाले ज्यादातर एस्ट्रोनॉट या अंतरिक्ष यात्रियों की तरह शुक्ल ने माना कि उनका सिर थोड़ा भारी था और थोड़ा चकरा रहा था. ऐसा इसलिए था क्योंकि शुक्ल शून्य गुरुत्वाकर्षण की उन परिस्थितियों के हिसाब से अपने को अभी ढाल ही रहे थे जिन्हें उन्होंने 28 घंटे की क्रू ड्रैगन की उड़ान के दौरान झेला था. यही उड़ान उन्हें और उनके तीन साथियों को 400 किमी की ऊंचाई पर पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगा रहे आइएसएस लेकर आई थी. जैसा कि हाल ही में दिल्ली आईं कोलोन स्थित यूरोपीय एस्ट्रोनॉट सेंटर में स्पेस फ्लाइट सर्जन डॉ. ब्रिगिट गोदार बताती हैं, शुक्ल का सिर भारी होने और चकराने की एक वजह यह थी कि गुरुत्वाकर्षण नहीं होने के बावजूद हृदय उसी गति से धड़कता रहता है जिस गति से यह पृथ्वी पर धड़कता है और खून तेज गति से सिर की ओर दौड़ता है जिससे चेहरे और जीभ में सूजन आ जाती है. ये सभी मोशन सिकनेस या गति रुग्णता के संकेत हैं. शरीर को शून्य गुरुत्वाकर्षण के हिसाब से ढलने में 24 से 36 घंटे का वक्त लगता है. दौअमेरिका के फ्लोरिडा स्थित कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरने के बाद शुक्ल ने भी वही जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण बल या जी-फोर्स अनुभव किया, जिसके बारे में भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने बात की थी जब अप्रैल 1984 में सोवियत सोयुज टी-11 अंतरिक्षयान उन्हें अंतरिक्ष में ले गया था. उस पल को याद करते हुए शर्मा ने कहा, आप उड़ान भरने के लिए ऊपर की तरफ देखते हुए अंतरिक्षयान में बैठे होते हैं, तब अपनी पसलियों पर जो गुरुत्वाकर्षण बल आप महसूस करते हैं, वह कमर पर महसूस होने वाले बल से चार गुना ज्यादा होता है. यह रीढ़ पर दबाव डालता है, जिससे फेफड़ों के फैलने के लिए बहुत कम जगह बचती है, इसलिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है. प्रक्षेपण के दिन 25 जून को शुक्ल उड़ान के शुरू और कामयाब होने को लेकर बहुत उत्सुक थे, और आखिर क्यों न होते, वे महीने भर क्वारंटीन में इंतजार जो करते आ रहे थे और तकनीकी वजहों से अपने प्रक्षेपण का कई बार स्थगित होना झेल चुके थे. वे कहते हैं, जब मैं लॉन्च पैड पर कैप्सूल में बैठा था, मेरे दिमाग में एकमात्र विचार यह आ रहा था कि चलो इस बार तो चलें ही. जब उड़ान शुरू हुई, मैं सीट पर जोर से पीछे की तरफ धकेला जाता रहा. फिर अचानक मुझे कुछ भी महसूस नहीं हुआ. निपट सन्नाटा था और हम शून्य में तैर रहे थे. क्या उड़ान थी—यह अद्भुत था. बहुत नीचे लॉन्च कॉम्पलेक्स 39ए के कंप्यूटरों की लंबी कतार वाले कंट्रोल रूम में अंतरिक्षयान को व्यग्रता से ऊपर उठता देख रहीं उनकी मां आशा शुक्ला ने अपनी आंखों से बरबस बहते आंसू पोंछे और उनके चेहरे पर अपार खुशी और राहत की शानदार मुस्कान खिल उठी. आइएसएस पहुंचते ही शुक्ल ने अपनी मोशन सिकनेस को झटक दिया और खुलकर मुस्कराए. एक्जियॉम मिशन-4 मिशन पर अपनी टीम के तीनों साथियों के साथ उन्होंने उन सात अंतरिक्षयात्रियों को गले लगाया जो अंतरिक्ष स्टेशन पर पहले से मौजूद थे. शुक्ल ने चुहल करते हुए कहा, मैं बच्चे की तरह सीख रहा हूं कि अंतरिक्ष में कैसे चलूं, बोलूं और खाऊं. एएक्स-4 मिशन के कमांडर पेगी व्हिटसन ने उनके गहरे नीले रंग के चोगे के गिरेबान पर चांदी का पिन खोस दिया था, जिसमें शुक्ल को आइएसएस पर आने वाला एस्ट्रोनॉट नंबर 634 बताया गया था. यानी अंतरिक्ष की कक्षा में वे 634वें मनुष्य हैं. आइएसएस बहुराष्ट्रीय सहकारी प्रयास है, जिसमें अमेरिका, रूस, यूरोप, जापान और कनाडा शामिल हैं. इसे 1998 से 2011 तक अलग-अलग चरणों में बनाया गया. अब यह पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगा रही अंतरिक्ष प्रयोगशाला है, जिसका आकार चार टेनिस कोर्ट के बराबर है. अभी तक 23 देशों के 280 अंतरिक्ष यात्री आइएसएस में वक्त गुजार चुके हैं. शुक्ल आइएसएस में रहने वाले पहले भारतीय अंतरिक्षयात्री हैं और 41 साल पहले राकेश शर्मा की ऐतिहासिक उपलब्धि के बाद पृथ्वी की कक्षा में जाने वाले मात्र दूसरे भारतीय. इस पल की अहमियत से वाकिफ शुक्ल ने कहा, उन कुछेक लोगों में होना सौभाग्य की बात है जिन्हें इस बेहद माकूल जगह से पृथ्वी को देखने का मौका मिला. दो दिन बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्ल से बात की तो उन्हें अपने पैरों को हिलने-डुलने से रोकने के लिए नीचे बांधना पड़ा था. मोदी ने पूछा, आइएसएस से कैसा दिखाई देता है, तो शुक्ल के शब्दों में 1984 में शर्मा के कहे की गूंज सुनाई दी. उन्होंने कहा, पहला विचार पृथ्वी के एक होने का एहसास था—देशों की कोई सीमा रेखा या सरहद नहीं थी. दूसरे, जब मेरी पहली नजर भारत पर पड़ी, तो बहुत बड़ा और भव्य दिखाई दिया, अपने 2-डी कागजी नक्शे की तरह नहीं. फिर मोदी ने मुस्कराते हुए शुक्ल को बताया कि वे उन्हें कुछ होमवर्क दे रहे हैं, और कहा, हमें मिशन गगनयान (भारत का स्वदेशी मानव अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रम) को आगे ले जाना है, हमें अपना अंतरिक्ष स्टेशन

कठघरे में खुद न्यायमूति

भारतीय राजनीति के जटिल संसार में, जहां फैसले अक्सर बंद दरवाजों के भीतर लिए जाते हैं, संसदीय मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू एक संवेदनशील मिशन में जुटे हैं. वे दलगत विभाजनों से परे सभी नेताओं का समर्थन उस एक काम के लिए जुटा रहे हैं जो भारत के न्यायिक इतिहास का ऐतिहासिक क्षण हो सकता है—न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा यानी हाइकोर्ट के किसी जज पर पहला महाभियोग. जज के आउटहाउस में आग से शुरू हुई यह कहानी अब भ्रष्टाचार के सामान्य कांड से आगे चली गई है. इसने भारत की न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच की दरारों को उघाड़ दिया और राष्ट्र की स्थापना के समय से ही खदबदा रहे तनावों को उजागर कर दिया. राजधानी पर काले बादल एकाधिक अर्थों में मंडरा रहे हैं और ज्यों-ज्यों संसद का मॉनसून सत्र नजदीक आ रहा है, यह मामला प्रमाण, प्रक्रिया और शक्ति के बारे में गंभीर सवाल खड़े कर रहा है. जब रखवाले ही आरोपों के कठघरे में हों तो रखवालों की निगरानी कौन करे? और तब क्या हो जब जवाबदेही का तंत्र सांस्थानिक युद्ध का हथियार बन जाए? आग जिसने हजारों सवाल सुलगा दिए दिल्ली के पेड़ों से घिरे तुगलक क्रिसेंट एवेन्यू में, जहां जज और राजनयिक रहते हैं, 14 मार्च, 2025 आम शुक्रवार की तरह शुरू हुआ. तब दिल्ली हाइकोर्ट में सेवारत न्यायमूर्ति वर्मा अपनी पत्नी के साथ भोपाल में थे. उनकी बेटी दीया 30 नंबर के उस विशाल बंगले में थीं, जो उनका सरकारी आवास है. घर के कर्मचारी रोजमर्रा के कामों में जुट गए, सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल) के गार्डों ने अपनी चौकियां संभाल लीं, और ऐसा कुछ न था जिससे लगे कि यह रात भारतीय न्यायशास्त्र के सफर का रास्ता बदल देगी. रात करीब 11.35 बजे दीया ने वह सुना जिसे बाद में उन्होंने धमाका कहा. घर के कर्मचारियों के साथ आवाज की ओर भागते हुए उन्होंने उन सर्वेंट क्वार्टर्स के पास बने तालाबंद स्टोररूम से लपटें निकलती देखीं जिन्हें एक चारदीवारी मुख्य आवास से अलग करती थी. शुरू में न तो सीआरपीएफ के कर्मियों ने और न ही मुख्य गेट पर तैनात गार्डों ने कोई कदम उठाया, यही वह ब्योरा था जिसने बाद में साजिश के सिद्धांतों को हवा दी. जब दिल्ली अग्निशमन सेवा के लोग आए और उन्होंने सुरक्षाकर्मियों की मदद से ताला जड़े दरवाजे को तोड़कर खोला, उन्हें ऐसा नजारा देखने को मिला जो समझ से परे था. इस मामले को उसकी सबसे यादगार साउंडबाइट दमकलकर्मियों के फोन वीडियो में दर्ज स्टेशन ऑफिसर मनोज मेहलावत के मुंह से अचानक निकले उद्गार ने दी: महात्मा गांधी में आग लग रही है. इशारा साफ था: गांधी की तस्वीर छपे 500 रुपए के नोटों की फर्श पर जलती गड्डियां, कुछ जल चुकी थीं और अन्य लपटों में आधी झुलसी थीं. फायर ब्रिगेड के डिविजनल ऑफिसर सुमन कुमार ने बाद में अपनी गवाही में कहा कि उन्होंने अपने करियर में ऐसा कभी नहीं देखा . दमकलकर्मियों और पुलिसकर्मियों समेत कई गवाहों ने बताया कि करेंसी नोटों का डेढ़ फुट ऊंचा ढेर था. मगर उसके बाद जो हुआ, या यूं कहें कि जो नहीं हुआ, वह भी इतना ही अहम साबित होना था. दिल्ली पुलिस ने सबूत जुटाने की कोई कार्रवाई नहीं की. न जब्ती ज्ञापन तैयार किया, न पंचनामा बनाया. फॉरेंसिक जांच के लिए एक भी करेंसी नोट सुरक्षित नहीं रखा गया. पौ फटते-फटते जली हुई नकदी गायब हो गई, बताया गया कि अज्ञात लोगों ने हटा ली, जबकि अपराध स्थल की रखवाली करने वाला भी कोई न था. आधी रात को लगी आग की खबर शायद पुलिस के रोजनामचों में ही दफ्न रह जाती अगर कोई—जिसकी पहचान अज्ञात है—यह जानकारी बाद में मीडिया को लीक न कर देता. खबर न्यूज चैनलों पर धमाके के साथ छा गई जब एक जज के आवास पर जलते नोटों की तस्वीर ने जनता को झकझोर दिया. सुप्रीम कोर्ट के सांस्थानिक तंत्र ने अस्वाभाविक तेजी दिखाई. कुछ ही दिनों के भीतर तब भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) संजीव खन्ना ने दिल्ली हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय से आरंभिक रिपोर्ट मांगी, जिन्होंने कहा कि पूरे मामले की ज्यादा गहन जांच की जरूरत है . सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने एक असाधारण बैठक में वर्मा का तबादला उनके मातृ हाइकोर्ट इलाहाबाद करने का प्रस्ताव रखा, जो साफ इशारा था कि न्यायपालिका संभावित घोटाले से दूरी बना रही थी. न्यायमूर्ति वर्मा ने 15 मार्च को दिल्ली लौटने पर जो किया, या जो नहीं किया, वह बाद में उनके खिलाफ मामले में सबसे अहम बन गया. वे जले हुए स्टोररूम में तत्काल नहीं गए. उन्होंने पुलिस में उस बारे में कोई शिकायत भी दर्ज नहीं करवाई जिसे बाद में उन्होंने अपने को फंसाने की साजिश करार दिया. इलाहाबाद हाइकोर्ट में अपने तबादले को उन्होंने विरोध किए बिना स्वीकार कर लिया. उनके आलोचकों के लिए यह व्यवहार अपराधबोध का संकेत था. उनका बचाव करने वालों को इसमें भौचक शख्स के सदमे और गफलत की झलक नजर आई. सीजेआइ खन्ना ने 22 मार्च को आंतरिक (इनहाउस) जांच करने के लिए तीन सदस्यों की समित गठित कर दी, जिसमें न्यायमूर्ति शील नागू (पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश), न्यायमूर्ति जी.एस. संधावालिया (हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश) और कर्नाटक हाइकोर्ट की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन थीं. 3 मई को पेश उनकी 64 पेज की रिपोर्ट न्यायिक अभियोग की तरह मालूम देती है. आरोपों पर न्यायमूर्ति वर्मा की प्रतिक्रिया से उनके मन के विश्वास की ताकत और उनकी कमजोर स्थिति दोनों का खुलासा हुआ. उनके

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