December 31, 2025
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उफान को कैसे टिकाऊ बनाया जाए
दरअसल, जब मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़े दिसंबर के आखिर में आए, तो अर्थशास्त्री हैरान मगर खुश थे. वृद्धि बढ़कर 8.2 फीसद पहुंच गई, जो पहली तिमाही के 7.2 फीसद से ज्यादा और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के 7 फीसद के अनुमान से काफी ऊपर थी. इससे एक अहम सवाल सामने आया. क्या अर्थव्यवस्था ने आखिरकार उस जड़ता को झटक दिया है, जो कोविड दौर के पहले से उसे घेरे हुए थी? उससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या यह वृद्धि टिक पाएगी, क्या निजी निवेश में जान डाल पाएगी और वह नौकरियां या रोजगार ला पाएगी, जिसकी देश को सख्त जरूरत है? इन सवालों के जवाब आसान नहीं हैं. दूसरी तिमाही में ऊंची जीडीपी सिर्फ इसलिए नहीं आई कि कॉर्पोरेट कारोबार में कोई सुधार हुआ, जिससे मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र को मदद मिली. दरअसल इसकी वजह पिछले साल की दूसरी तिमाही का 5.6 फीसद का बेहद मामूली आधार था. आंकड़ों को 0.5 फीसद जैसे बेहद कम जीडीपी डिफ्लेटर का सहारा भी मिला. डिफ्लेटर का इस्तेमाल नॉमिनल जीडीपी यानी मौजूदा कीमतों पर बिना महंगाई के असर को घटाए अर्थव्यवस्था में पैदा हुए कुल मूल्य को असली जीडीपी में बदलने के लिए किया जाता है, ताकि सिर्फ कीमतों में बढ़ोतरी नहीं, बल्कि उत्पादन की सही तस्वीर सामने आ सके. कुछ और संकेत भी बताते हैं कि अर्थव्यवस्था मजबूत दौर में दाखिल हो सकती है. पहला है कम महंगाई. यह लगातार कई महीनों तक रिजर्व बैंक के 2 से 4 फीसद के लक्ष्य के निचले सिरे पर बनी रही. उसमें खाने-पीने की चीजों की कम महंगाई और कच्चे तेल की कम कीमतों की बड़ी भूमिका रही. दूसरी बड़ी वजह खपत की वापसी है. उसे जीएसटी स्लैब में बदलाव और आयकर सुधारों से सहारा मिला. नए जीएसटी स्लैब से 90 फीसद जरूरी सामान पर टैक्स घटा, जिससे लोगों की जेब पर दबाव कम हुआ. ये स्लैब सितंबर के आखिर में लागू हुए, इसलिए उनका पूरा असर वित्त वर्ष 26 की तीसरी तिमाही में दिखेगा. रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा के शब्दों में, देश की अर्थव्यवस्था अब एक विरले उछाल के दौर में पहुंच गई
मेजबानी का परचम लहराने को तैयार
नवंबर के आखिर में ग्लासगो में कॉमनवेल्थ स्पोर्ट जनरल असेंबली के बड़े हॉल में अचानक ढोल की थाप के साथ गरबा नर्तक मंच पर छा गए. यह अहमदाबाद को आधिकारिक तौर पर 2030 कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी मिलने का जश्न था. गुजरात के उपमुख्यमंत्री हर्ष सांघवी, भारतीय ओलंपिक संघ (आइओए) की प्रमुख पी.टी. उषा और वहां मौजूद दूसरे अधिकारियों के लिए यह फैसला चौंकाने वाला नहीं था. लेकिन इससे आगे की बड़ी जिम्मेदारी साफ हो गई. कुछ हफ्तों से इसका एहसास होने लगा था. अक्तूबर के मध्य में कॉमनवेल्थ स्पोर्ट के एग्जीक्यूटिव बोर्ड ने अहमदाबाद के नाम की सिफारिश कर दी थी, इसलिए ग्लासगो में मुहर लगना बस औपचारिकता थी. फिर भी 2010 में दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के कड़वे अनुभव के 15 साल बाद भारत को एक तरह से दूसरा मौका मिल रहा है. उस आयोजन में खर्च बढ़ने, ढांचागत खामियों और राजनैतिक विवादों ने काफी नुक्सान पहुंचाया था. इस बार अधिकारी कह रहे हैं कि दांव सिर्फ 11 दिन के खेल आयोजन तक सीमित नहीं है. अम्दावाद 2030 के नाम वाले इस शताब्दी संस्करण ने एक गैर मेट्रो शहर को भारत की वैश्विक खेल महत्वाकांक्षाओं के केंद्र में ला खड़ा किया है. यह 2036 समर ओलंपिक की मेजबानी के लिए भारत की बोली से पहले एक अहम रिहर्सल होगा. गुजरात ने अपने प्रस्ताव में कहा था कि कॉमनवेल्थ गेम्स अम्दावाद को देश के प्रमुख स्पोर्ट्स हब के तौर पर उभरने को रफ्तार देगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा पर जोर देते हुए एक्स पर लिखा कि भारत अब मजबूती से वैश्विक खेल नक्शे पर है . लेकिन अम्दावाद 2030 का मूल्यांकन सिर्फ चमक-दमक से नहीं होगा; गवर्नेंस, फंडिंग, खेलों की गहराई और कामकाज के तरीके सब कसौटी पर होंगे. यह अहमदाबाद के ओलंपिक सपने के लिए परीक्षा का अवसर है. अहमदाबाद कैसे जीता असल में गुजरात की मुहिम जनवरी 2025 में शुरू हुई. शीर्ष नीति नियंताओं ने माना कि ज्यादा अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों की मेजबानी करने से भारत का ओलंपिक दावा मजबूत होगा. पहली चुनौती घरेलू राजनीति थी. गठबंधन सरकार में अहमदाबाद को मेजबान बनाने पर सहमति बनानी थी, जबकि भुवनेश्वर, हैदराबाद और नई दिल्ली भी दौड़ में थे. आखिरकार अहमदाबाद के चुने जाने पर कई