December 03, 2025
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नीमो फिर चैंपियन
जनता दल (यूनाइटेड) के 74 साल के दिग्गज नीतीश कुमार 20 नवंबर को रिकॉर्ड दसवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए खड़े हुए, तो ऐसे दौर में कदम बढ़ाया जो तरह-तरह के वादों और लोगों की उम्मीदों से बोझिल है. उन्होंने न सिर्फ राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के तेजस्वी यादव जैसे युवा, जोशीले विरोधी को हराया, बल्कि अपनी दिमागी सेहत और राजनैतिक समझ पर हर तरह के शक-शुबहे को भी बेमानी बना दिया. एंटी-इन्कंबेंसी की कथाएं तो हवा ही हो गईं. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और छोटे मगर सामाजिक समीकरण में सार्थक आधार वाले दूसरे साथियों के साथ उनकी पार्टी की साझेदारी में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को कुल 243 में 202 सीटों पर भारी जीत मिली. अब बारी है जनादेश पर खरा उतरने की. पहली नजर में इस लक्ष्य को साधने का तौर-तरीका पुराने से बहुत अलग नहीं दिखता. कुछ दिन पहले तक नीतीश के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने पर थोड़ी शंकाएं थीं. लेकिन न सिर्फ वे वापस आसीन हैं, बल्कि भाजपा के दो उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा भी बदस्तूर कायम हैं. नई कैबिनेट में जद (यू) के नौ, भाजपा के 14, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी से दो और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर (हमएस) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) से एक-एक मंत्री शामिल हैं. नए चेहरे (नौ) और विदा हुए चेहरे (12) भी गौरतलब हैं, मगर मंत्रिमंडल में कमोबेश वही संतुलन, साझेदारी और एकजुटता दिखती है, जो चुनाव प्रचार में दिखी. उस दौरान मतभेद की संभावना बनी हुई थी, फिर भी रथ के सभी पहिए साथ-साथ चले. क्या यह राजकाज में भी जारी रहेगा? बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि नीतीश नए तरह
जीत की पटकथा
बिहार में दूसरे चरण के मतदान से कुछ दिन पहले आधी रात ढल चुकी थी और पटना लगभग सो चुका था. लेकिन होटल मौर्या में ऊपरी मंजिल पर एक भारी पर्दे वाले सुइट में खासी हलचल दिख रही थी. एक खाली सोफे पर बैठे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बारीक समीक्षा में जुटे थे. सवाल सीधे थे: क्या हर बूथ कमेटी को चुनावी सामग्री मिल गई? मोटरसाइकिल रैली के झंडे इतने छोटे क्यों हैं? आज किन गांवों में घर-घर जाकर संपर्क किया गया? हर मीटिंग में एक ही रूटीन होता था, बॉक्स टिक किए जाते थे, जाना जाता कि कहां कमी रह गई है और अगले 24 घंटों का प्लान बनाया जाता. बिहार में एनडीए के सफल चुनावी अभियान में इस तरह के माइक्रोमैनेजमेंट की अहम भूमिका रही है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की विशाल चुनावी मशीनरी ने कमाल कर दिया, जिसके रणनीतिकार शाह, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और राष्ट्रीय सचिव विनोद तावड़े हर जगह उपस्थिति दर्ज कराते थे. प्रधान को संगठनात्मक मजबूती और जमीनी स्तर पर टीम जुटाने का जिम्मा सौंपा गया था, जबकि तावड़े संदेश और सोशल इंजीनियरिंग का मोर्चा संभाल रहे थे. एनडीए के सीट बंटवारे फॉर्मूले के तहत भाजपा को 101 सीटें मिलीं जो पहली बार गठबंधन सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) के बराबर थीं, जिसने यह बताया कि भगवा पार्टी का दबदबा गठबंधन में अब कहीं ज्यादा बढ़ चुका है. शुरू से ही गठबंधन के बीच समन्वय बेहद जरूरी था. जद (यू) की तरफ से यह जिम्मा कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने संभाल रखा था, जिनके तावड़े और प्रधान दोनों के साथ लंबे समय से अच्छे रिश्ते रहे हैं. शाह के जूनियर मंत्री नित्यानंद राय, जिनका पासवान परिवार के साथ बरसों पुराना रिश्ता रहा है, को चिराग पासवान और उनकी लोक जनशक्ति पार्टी