November 19, 2025
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सारी धारणाएं कीं ध्वस्त
वह 2 नवंबर की रात थी जब दिलों की धड़कनें थाम लेने वाले कुछ लम्हे आए. यह तब हुआ जब क्रिकेट दीवानों को भारतीय टीम की जीत मुट्ठी में दिखने लगी. इस 2025 के महिला क्रिकेट विश्व कप फाइनल मैच पर देश भर में रिकॉर्ड 19 करोड़ लोग टीवी पर आंख गड़ाए बैठे थे और नवी मुंबई के डीवाइ पाटिल स्टेडियम में ज्यादातर नीले रंग की पोशाक में मौजूद 40,000 लोगों का जज्बा उफान ले रहा था. उस पल तो धड़कनें अट्ठहास करने लगीं, जब दक्षिण अफ्रीका की कप्तान लॉरा वूल्वार्ड्ट के बल्ले से निकली गेंद आसमान छूने लगी और कलाबाजी खाकर अमनजोत कौर ने उसे लपक लिया, जो पहले ही सीधे विकेट पर गेंद फेंक कर रन आउट कराने से सबकी नजरों में चढ़ चुकी थीं. उस एक कैच ने ऐसे वक्त वूल्वार्ड्ट की उम्मीदों पर पानी फेर दिया, जब वे भारत से मैच छीनती दिख रही थीं. ऐसा ही उफनता दूसरा पल वह था, जब दीप्ति शर्मा की यॉर्कर गेंद ने एन्नेरी डेरक्सेन को चलता कर तीसरी बार मैच जिताऊ पांच विकेट निकाले. दीप्ति पहले उतनी ही गेंदों में 58 रन के जरिए घरेलू पारी को संभाला चुकी थीं. फिर, अपनी साथी खिलाड़ियों की हैरी दी, कप्तान हरमनप्रीत कौर ने गजब की दिमागी बाजीगरी दिखाई और बल्ले की छलांग दिखाने के लिए चर्चित शेफाली वर्मा को गेंद थमाकर जोखिम उठाया, लेकिन शेफाली ने दो बहुमूल्य विकेट चटका कर मानो तोहफा दे दिया. आखिरी करिश्मा कप्तान ने जादुई कलाबाजी के साथ कैच लपक कर मैच की इतिश्री की. ज्यादातर कपिल के डेविल्स की बाद की पीढ़ी में जन्मीं इन हैरी की हिरोइनों ने न सिर्फ भारत की पहली महिला विश्व कप जीत की पटकथा लिखी, बल्कि देश में स्त्री सशक्तीकरण का भी बुलंद मुकाम तैयार किया. 1983 में भारत की पहला पुरुष विश्व कप जीतने वाली टीम का हिस्सा रहे क्रिकेट दिग्गज सुनील गावस्कर ने ऐलान किया, यह सदियों की जीत है. इसे भारतीय क्रिकेट के इतिहास की सबसे बड़ी जीत
नीतीश की सत्ता गाथा
आसमान का धूसर रंग चिंता का सबब था लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 1 नवंबर को लगातार रोड पर थे, उस रोज उन्होंने चार चुनावी सभाएं कीं. इनमें से एक थी वैशाली जिले की महनार सीट के जन्दाहा में, जहां से उनकी पार्टी जद (यू) (जनता दलयूनाइटेड) के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा चुनाव लड़ रहे हैं. झक सफेद कुर्ते में 74 साल के नीतीश मंच पर पहुंचे और वे थके हुए सत्तर पार नेता जैसे बिल्कुल नहीं लगे, जैसा उनके विरोधी उन्हें दिखाना चाहते हैं. मंच पर उन्होंने मुस्कुराते हुए माला स्वीकार की और सामने बैठे भीड़ को देखा, जिसमें ज्यादातर महिलाएं थीं, कुछ पुराने समर्थक और कुछ उत्साही युवा. नीतीश ने अपने जाने-पहचाने अंदाज में भाषण शुरू किया: आप तो जानते ही हैं... उनकी आवाज में दो दशक की सत्ता और बरसों का चुनावी अनुभव साफ झलक रहा था. फिर वे सीधे मुद्दे पर आ गए. उन्होंने अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं: सड़कें, स्कूल, गांव-गांव में बिजली के खंभे. और उसी सांस में जंगलराज की वापसी का अंदेशा जताते हुए कहा कि गलती हुई तो हालात फिर पुराने दौर में लौट सकते हैं. उन्होंने याद दिलाया कि लालू यादव के शासनकाल में शुरुआती 2000 के दशक में बिहार किन तनावों से गुजरा था, और फिर शालीन लहजे में कहा कि एक और कार्यकाल नहीं, बल्कि बीस साल पहले शुरू की गई विकास यात्रा को पूरा करने का सिर्फ मौका दीजिए. विपक्ष पर संदेह जताने के बाद नीतीश कुमार ने उस मुद्दे पर बात घुमाई जो अब उनकी सियासी पहचान का अहम हिस्सा बन चुका है: महिलाओं का सशक्तीकरण. उन्होंने पुलिस और सरकारी नौकरियों में महिलाओं को मिले आरक्षण की याद दिलाई, लेकिन इस बार उनका सबसे बड़ा सहारा है दशहजारी योजना यानी मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना, जिसके तहत चुनाव से ठीक पहले हर पात्र महिला (कुल 1.21 करोड़) को 10,000 रुपए दिए जा रहे हैं ताकि वह कोई छोटा बिजनेस शुरू कर सके. यह योजना उनके उस वोट बैंक को मजबूत करने का जरिया है जो जाति से लगभग परे और सीधा नीतीश के काम से जुड़ा हुआ है. जब नीतीश बोल रहे थे, तब भीड़ में बैठी कई महिलाओं ने हाथ उठाकर समर्थन जताया. उनमें ज्यादातर जीविका समूह की सदस्य थीं. उनमें से कुछ को पैसे मिल चुके थे, तो कुछ को मिलने की उम्मीद थी. महिलाओं ने बताया कि उन्होंने इस पैसे से नए कपड़े और दीवाली की मिठाई खरीदी और कुछ ने माइक्रो लोन का कुछ हिस्सा चुकाया. ये छोटे-छोटे खर्चे अब चुनावी भाषा में सशक्तीकरण की अर्थव्यवस्था बन गए हैं. मंच पर थोड़ी देर बाद जद (यू) के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने माइक संभाला और भीड़ से कहा: ये पैसा नहीं लौटाना है! यानी यह तो तोहफा है. नीतीश का समीकरण ढाई दशकों में नीतीश कुमार नौ बार बिहार के मुख्यमंत्री बन चुके हैं. इनमें से सात बार वे भाजपा के साथ, और दो बार लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव की पार्टी राजद के साथ सत्ता में रहे. अब फिर से वे एनडीए का चेहरा बनकर तेजस्वी के महागठबंधन के युवा जोश के सामने खड़े हैं. नीतीश की राजनैतिक टिकाऊ शक्ति आखिर कहां से आती है? वजह साफ है: बिहार के बड़े वोट ब्लॉकों में अब भी राजद के प्रति एक झिझक