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September 24, 2025

जेन ज़ी की बगावत

भारतीय उपमहाद्वीप में नौजवान मतदाताओं ने अधबीच में सरकारें पलटने की एक अजीब ताकतवर तरकीब ढूंढ निकालकर उसे लागू करना शुरू कर दिया है. अलबत्ता यह लोकतांत्रिक तो कतई नहीं. पहली मिसाल: श्रीलंका, जुलाई 2022. भारी आर्थिक संकट से मुकाबिल नौजवानों ने अरागालय (संघर्ष) की मशाल थामी और सत्ता के केंद्र राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री के सचिवालयों पर धावा बोल दिया. सत्तारूढ़ राजपक्षे परिवार देश छोड़ भागने पर मजबूर हुआ और अंतरिम सरकार बैठी. दूसरी मिसाल: बांग्लादेश, अगस्त 2024. सरकारी नौकरी में आरक्षण के खिलाफ विश्वविद्यालय छात्र संघों के आंदोलन पर ढाका पुलिस की अंधाधुंध गोलीबारी में 100 से ज्यादा हताहत हुए, तो नौजवानों का गुस्सा सत्ता के ठिकानों और संसद भवन पर फूटा. गुस्से की आग में झुलसने से बचने के लिए प्रधानमंत्री शेख हसीना को फटाफट सैन्य उड़ान से भारत भागना पड़ा. तीसरी मिसाल: नेपाल, सितंबर 2025. सोशल मीडिया पर विवादास्पद बंदिश से देश की जेन ज़ी (15 से 25 वर्ष के युवा) पीढ़ी के राजधानी काठमांडो में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन पर पुलिस की गोलीबारी में 19 नौजवान मारे गए. अगले दिन आक्रोश भड़क उठा. सड़कें लड़ाई का मैदान बन गईं और गुस्से की आग में संसद, राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास सब धू-धूकर जल उठे. राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल और प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को महफूज ठिकाने तलाशने पड़े.

राहुल के बूते आखिर पकड़ी रक्त्रतार

वोटर अधिकार यात्रा की कमरतोड़ मेहनत के बाद भाग्य भारती इन दिनों थकान मिटा रही हैं. हालांकि वे जानती हैं कि इसके लिए ज्यादा समय नहीं है. वे कहती भी हैं, हमारा असल काम तो अब शुरू होने वाला है. राहुल जी की यात्रा में उमड़ी भीड़ को कांग्रेस के वोटरों में बदलने की जिम्मेदारी हमारी ही है. ऐसा नहीं कर पाए तो पिछले 7-8 महीने की मेहनत बेकार चली जाएगी. कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआइ की राज्य उपाध्यक्ष, पिछड़ा वर्ग से आने वाली 25 वर्षीया भारती को सीवान जिले के विधानसभाई क्षेत्रों में महिलाओं को राजनीतिक रूप से जागरूक करने की जिम्मेदारी मिली है. सितंबर, 2023 में बिहार कांग्रेस की सदस्यता लेते वक्त उन्हें लगा नहीं था कि पार्टी के पुराने घाघ नेताओं के बीच उन्हें कभी कोई जिम्मेदारी भी मिलेगी. 2024 और लोकसभा चुनाव भी निकल गया. वे खाली ही रहीं. पर इस साल उन्हें भरपूर काम मिला और जिम्मेदारियां भी. 15 मई को दरभंगा के आंबेडकर छात्रावास में राहुल गांधी के दलित छात्रों की समस्या सुनने के लिए आने पर पार्टी ने मंच संचालन की जिम्मेदारी मुझे दी. मुझे पटना के तीन-चार महिला छात्रावासों का भी समन्वय करना था. छह जून को गया में महिला संवाद कार्यक्रम में समन्वय का काम मिला और राहुल जी से मिलने का मौका भी. भाग्य भारती बिहार में हाल के दिनों में उठकर खड़ी हो रही कांग्रेस का प्रतिनिधि चेहरा हैं, जिसके अध्यक्ष रविदास जाति से आने वाले राजेश राम हैं. पार्टी के 40 में से 18 जिलाध्यक्ष बहुजन समाज से आते हैं. पार्टी में इस समाज के प्रकोष्ठ के प्रभारी कृष्णा अलावरु सरीखे युवा हैं जिन्होंने राजद के ऐतराज के बावजूद अपना स्टार कैंपेनर कन्हैया कुमार को बनाया और वोटर अधिकार यात्रा में पप्पू यादव को जगह दी. पार्टी के सौ साल से ज्यादा पुराने दफ्तर में अब युवा और बहुजन चेहरों का दबदबा दिखता है. यह वही बिहार कांग्रेस है जो पिछले साल तक राजधानी पटना में एक पुतला दहन और विरोध प्रदर्शन तक के कार्यक्रम में भीड़ नहीं जुटा पाती थी. उसने न सिर्फ 16 दिन तक चली वोटर अधिकार यात्रा को सफल करके दिखाया बल्कि उसका समापन पटना के गांधी मैदान में किया. सियासी हलकों में कभी राजद की पिछलग्गू समझी जाने वाली कांग्रेस को लेकर आज यह कहा जा रहा है कि वह बिहार में विपक्षी गठबंधन को लीड कर रही है. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के हिस्से आईं 70 में से सिर्फ 19 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को अब महागठबंधन की कमजोर कड़ी नहीं कहा जा रहा. पार्टी को समझने वाले जानते हैं कि बिहार कांग्रेस के लिहाज से यह बड़ा बदलाव है. एक ऊंची छलांग है, जो राहुल गांधी की लगातार सक्रियता, देश भर के बड़े कांग्रेसी नेताओं की नियमित आवाजाही, कृष्णा अलावरू जैसे संगठनकर्ता को प्रभारी बनाने और कन्हैया कुमार जैसे लोकप्रिय युवा नेता की सक्रियता से मुमकिन हुई है. कैसे बदली कांग्रेस वह 18 जनवरी, 2025 का दिन था. राहुल गांधी पटना में थे. वे डेढ़ साल बाद बिहार कांग्रेस के दफ्तर सदाकत आश्रम पहुंचे थे. मंच सजा था. तब के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने उनके स्वागत में भीड़ जुटाई थी. मंच से उन्होंने राहुल से एक मांग भी कर दी, आप जिस तरह दक्षिण भारत और उत्तर प्रदेश को समय देते हैं, उसी तरह बिहार को दें तो हम भरोसा दिलाते हैं कि कांग्रेस को बिहार में 90 से पहले वाली स्थिति में ला देंगे. राहुल ने उस रोज कोई टिप्पणी नहीं की. मगर तब से वे छह बार बिहार यात्रा कर चुके हैं और इस साल पूरे बीस दिन इस चुनावी राज्य में गुजार चुके हैं, जिसमें वोटर अधिकार यात्रा के 15 दिन शामिल हैं. हां, इस दौरान राहुल से बार-बार बिहार आने की मांग करने वाले प्रदेश अध्यक्ष की विदाई हो गई. पिछले साल कांग्रेस ज्वाइन करने वाले युवा हल्ला बोल के संस्थापक और राहुल गांधी के करीबी समझे जाने वाले अनुपम बताते हैं, राहुल जी इस बात को समझते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को रिवाइव करना है तो बिहार और पूर्वांचल उसका प्रमुख केंद्र हो सकता है. इसलिए उन्होंने बिहार में पार्टी की पूरी ताकत लगाने का फैसला किया. हम सबने पार्टी को रिवाइव करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. राहुल जी के अलावा पार्टी

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