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December 17, 2025

“भारत एक ग्लोबल ताकत है, उस पर कोई धौंस नहीं जमा सकता”

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चार साल से टलती आई मुलाकात ऐसे वक्त में हो रही है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पूरी दुनिया की सियासी शतरंज की बिसात को नए सिरे से बिछाने में लगे हैं. दुनिया युद्ध, पाबंदियों और बदलते पावर सेंटर की वजह से दो हिस्सों में बंटी हुई है, और देश अपनी पुरानी सोच छोड़कर चुपचाप नई रणनीति बना रहे हैं. ऐसे माहौल में पुतिन की भारत यात्रा सिर्फ एक औपचारिक मुलाकात नहीं है. यह पश्चिम के साथ ही विकासशील देशों को एक संदेश है कि रूस किन देशों को लंबे समय के पार्टनर के तौर पर देखता है. और भारत के लिए यह अमेरिका को बताने का मौका है कि वह दबाव में झुकने वाला देश नहीं. दोनों पक्ष अपने रिश्तों को दोबारा मजबूत करना चाहते हैं. क्रेमलिन में अपनी भारत यात्रा से एक दिन पहले इंडिया टुडे टीवी की टीम अंजना ओम कश्यप और गीता मोहन को दिए गए इस विरले और एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में पुतिन ने 100 मिनट तक कई मुद्दों पर बात की जो सिर्फ भारत-रूस रिश्तों से परे हैं. कभी उनका लहजा सख्त था, कभी समझाने वाला, और कई बार वे हैरान करने वाले तरीके से नरम भी दिखे, खासकर जब वे भारत और मोदी की बात कर रहे थे. वे मोदी को अपना दोस्त बताते हैं और यह भी कहते हैं कि मोदी देश के लिए मुश्किल टास्क सेट करते हैं, जो अच्छी बात है. उनके लिए दिल्ली सिर्फ पुराना साथी नहीं बल्कि विकासशील देशों के नए पावर सेंटर्स का अहम हिस्सा है. ब्रिक्स, एससीओ और एशिया-अफ्रीका के वे देश जो अब व्यापार, फाइनेंस और टेक्नोलॉजी की दुनिया बदल रहे हैं. भारत-रूस रिश्तों पर बात करते हुए पुतिन कहते हैं कि दोनों देशों का भविष्य सिर्फ डिफेंस तक सीमित नहीं. असली संभावना न्यूक्लियर एनर्जी, स्पेस, शिपबिल्डिंग, एविएशन और सबसे अहम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में है. इसके अलावा व्यापार का असंतुलन ठीक करने का बड़ा प्लान है, वह भी किसी हुक्म से नहीं. पुतिन पश्चिम की इस कोशिश की आलोचना करते हैं कि भारत को रूसी तेल खरीदने पर टोक दिया जाए या पाबंदियों से डराया जाए. उनका कहना है कि कुछ लोग भारत की अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती ताकत से परेशान हैं और राजनीति का इस्तेमाल करके कारोबारी माहौल को बिगाड़ रहे हैं. यूक्रेन की जंग को लेकर पूछे गए सवाल पर पुतिन ने इसे रूसी भाषी लोगों, उनकी परंपराओं, उनकी भाषा और ऑर्थोडॉक्स चर्च की रक्षा की लड़ाई बताया. उन्होंने इंडिया टुडे टीवी से कहा कि यह स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन किसी जंग की शुरुआत नहीं बल्कि उस जंग को खत्म करने की कोशिश है जो यूक्रेनी राष्ट्रवादी ताकतों ने शुरू की थी . उनका कहना है कि यह लड़ाई तब खत्म होगी जब रूस इलाके आजाद करवाने और अपनी सुरक्षा बढ़ाने वाले अपने लक्ष्यों को हासिल कर लेगा. नाटो (एनएटीओ) का फैलाव उनके हिसाब से सबसे बड़ी रणनीतिक समस्या है. यह बातचीत इस बात की भी झलक देती है कि पुतिन ट्रंप की वापसी और पश्चिमी देशों को कैसे देखते हैं. वे जी8 में लौटने को लेकर खुश नहीं हैं, जी7 को भी उतना अहम नहीं मानते और ज्यादा दिलचस्पी उन प्लेटफॉर्म में दिखाते हैं जहां भारत और चीन दोनों बड़े खिलाड़ी हैं. भारत-चीन तनाव पर पुतिन ने बहुत संभलकर बात की. वे दोनों देशों को रूस का करीबी दोस्त बताते हैं और कहते हैं कि उन्हें दखल देने का कोई हक नहीं है. लेकिन वे यह भी कहते हैं कि मोदी और शी जिनपिंग पूरी कोशिश कर रहे हैं कि विवाद बढ़ने न पाए और उनकी समझदारी की वजह से एशिया की बड़ी तस्वीर बिगड़ने से बची हुई है. पूरी बातचीत में पुतिन पूरी तरह आत्मविश्वास में दिखे. उनकी चाल-ढाल और बोलने में एक अलग ही ठसक थी. वे काफी विनम्र और दोस्ताना भी रहे. डेढ़ घंटे से ज्यादा सवालजवाब होने के बाद भी उन्होंने इंडिया टुडे ग्रुप की एडिटोरियल टीम के साथ अनौपचारिक चर्चा और उनके सवालों के जवाब देने के लिए हामी भर दी. पेश हैं इस इंटरव्यू के संपादित अंश:

दौड़ न पाई इंटर्न स्कीम

प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना (पीएमआइएस) के आगाज के वक्त सरकार की नजर में शायद कोटा के इक्कीस वर्षीय नितिन राठौर जैसे छात्र रहे होंगे. करियर पॉइंट यूनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक नितिन नौकरी की ख्वाहिश वाले अपने कारोबारी परिवार में पहले नौजवान हैं. बीते कुछ महीनों से वे एक भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनी के मानव संसाधन विभाग में काम कर रहे हैं. एक साल की इंटर्नशिप को सुरक्षित करियर की ओर कदम मानते हुए वे कहते हैं, मैं इसमें अपना 100 फीसद दे रहा हूं, ताकि वे प्री-प्लेसमेंट ऑफर दें. वैसे, राठौर के लिए कॉर्पोरेट संस्कृति में ढलना इतना आसान भी नहीं था. उन्हें पहला सबक तो समय की पाबंदी का मिला. दो महीने तक बार-बार देर से पहुंचने और लिहाजा वेतन में कटौती के बाद अब वे सुबह ठीक 8:20 बजे डेस्क पर मौजूद रहते हैं. वे जवाबदेही के साथ-साथ बतौर टीम काम करना भी सीख रहे हैं. मगर इसमें ऐसी अलग बात क्या है? नितिन दरअसल उन चंद अञ्जयर्थियों में हैं जिन्होंने महत्वाकांक्षी पीएमआइएस पहल के तहत बतौर इंटर्न करियर शुरू किया. साल 2024 के आम चुनावों के ऐन पहले फरवरी, 2024 बजट में पीएमआइएस का ऐलान किया गया और इसका उद्देश्य शीर्ष 500 कंपनियों में पांच साल के दौरान औसतन एक करोड़ या एक साल में इंटर्नशिप के 20 लाख अवसर प्रदान करना है. यह योजना कम आय वाले परिवारों के 21-24 वर्ष के युवाओं, खासकर एनईईटी (नॉट इन एजुकेशन, एम्प्लायमेंट या ट्रेनिंग) श्रेणी वालों को ध्यान में रखकर बनाई गई. योजना के तहत, प्रत्येक प्रशिक्षु को प्रति माह 5,000 रुपए मिलते हैं. केंद्र सरकार इसमें 4,500 रुपए का योगदान देती है तो बाकी 500 रुपए कंपनियां अपने कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) फंड से देती हैं. इसके अलावा उन्हें 6,000 रुपए का एकमुश्त भत्ता मिलता है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसी फरवरी में राज्यसभा में कहा था, इसका मकसद नौकरी प्रदान करना नहीं, बल्कि इंटर्नशिप के जरिए अनुभव दिलाना है और बाजार की जरूरतों के मुताबिक युवाओं को पारंगत करना है. साल में 20 लाख इंटर्नशिप को पूरा करने की बजाए, पीएमआइएस की नोडल अथॉरिटी कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) ने पहले पायलट चरण शुरू किया. बाद में, यह सावधानी उचित नजर आई. अक्तूबर 2024 में लॉन्च इस योजना के पायलट चरण में 1,25,000 इंटर्न को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया था. मगर, इसमें भागीदारी न केवल पीछे रही, बल्कि उम्मीदों से काफी कम रही. एमसीए इतनी कम भागीदारी का अनुमान नहीं लगा पाया था. यह बात तब साफ हो गई जब उन्होंने वित्त वर्ष 2026 के लिए अपने बजटीय अनुमानों में पीएमआइएस को 15 लाख इंटर्नशिप तक बढ़ाने की मांग की और 10,831 करोड़ रुपए का प्रावधान इसके लिए मंजूर भी हो गया. यह धन वित्त वर्ष 2025 में आवंटित 2,000 करोड़ रुपए से पांच गुना था. पायलट प्रोजेक्ट के लिए आवंटित 840 करोड़ रुपए को घटाकर 380 करोड़ रुपए कर दिया गया और उनमें से अब तक सिर्फ 73.72 करोड़ रुपए खर्च हो पाए हैं. पहले चरण के निराशाजनक नतीजों की वजह से सरकार को इस साल जनवरी में दूसरा चरण

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