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September 03, 2025

बेमिसाल माइक्रो उद्यमी

इस 15 अगस्त को अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मनाते वक्त देश आर्थिक कायापलट कर देने वाले दशक के मुहाने पर खड़ा था. ऐसा दशक जो न केवल चौतरफा फैले विशाल औद्योगिक घरानों या अरबों डॉलर के यूनिकॉर्न के हाथों गढ़ा जाएगा, बल्कि भारत के उन गुमनाम उद्यमियों के चुपचाप और लगातार उभार के माध्यम से गढ़ा जाएगा जो करघों पर काम करते हैं, दो कमरों की फै्ट्रिरयों में पसीना बहाते हैं, ज्यादातर दुपहिया वाहन पर चलते हैं और थककर चूर होकर घर लौटते हैं. वे स्थानीय समस्याओं और जरूरतों को उद्यमशीलता के अवसरों में बदलकर लाखों नौकरियों का सृजन करते और भारत के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को बनाए रखते हैं. ये माइक्रो उद्यमी भले मामूली हों मगर अर्थव्यवस्था पर उन रूपंकर भट्टाचार्य को ही लीजिए, जिन्हें बेहद असामान्य स्थितियों में उद्यमशीलता के कीड़े ने काट लिया. वन्यजीव प्रेमी होने के नाते वे बार-बार हाथ से फिसल रहे उस अजगर की तलाश में थे जो असम में गुवाहाटी के नजदीक दीपोर बील नाम की ताजे पानी की विशाल झील पर फैले जलकुंभी के घने झुरमुट में गायब हो गया था. तभी उन्हें एहसास हुआ कि तेजी से फैलने वाली इस खरपतवार ने जलीय जैवविविधता का दम घोंट दिया है और राज्य की कुछ बेहतरीन वेटलैंड्स को पानी में डूबे कब्रिस्तानों में बदल दिया है. रूपंकर अपने दोस्त अनिकेत धर के साथ इस खरपतवार से निजात पाने के तरीकों के बारे में सोचने लगे. खोजबीन और शोध से उन्हें पता चला कि जलकुंभी में मौजूद काफी सारा फाइबर कागज बनाने के लिए उम्दा कच्चा माल है. इस तरह 2022 में कुंभी कागज का जन्म हुआ. कचरा प्रबंधन को बढ़ावा देने वाली ब्रिटेन की परमार्थ संस्था वेस्ट ऐड से 8.3 करोड़ रुपए हासिल करके इस जोड़ी ने गुवाहाटी के बाहरी छोर पर फैक्ट्री लगाई. कुंभी को कागज में बदलने के लिए उन्होंने इसकी जरूरतों के हिसाब से डिजाइन की गई मशीन विकसित की. जल्द ही उन्हें ऐसे उद्यमों को बढ़ावा देने वाली केंद्र सरकार की पहल असम स्टार्टअप से अनुदान मिल गया. उसके बाद उन्होंने अपना दायरा काजीरंगा नेशनल पार्क की वेटलैंड्स तक बढ़ा लिया. उनके टर्नओवर में मुनाफा होने लगा है, और हाल ही उन्हें राष्ट्रीय मान्यता भी मिल गई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी कामयाबी का जिक्र अपने मन की बात कार्यक्रम में किया. वहां से करीब 2,300 किमी दूर औरंगाबाद में संदीप धाबड़े हैं, जो शुरू में तबलावादक बनना चाहते थे और महाराष्ट्र भर में अपनी कला दिखाकर किसी तरह गुजर-बसर कर रहे थे. वे याद करते हैं, ऐसे भी दिन थे जब दो वक्त का खाना मिलना भी बड़ी बात थी. गुजारे के लिए वे एक पैकेजिंग कंपनी से जुड़ गए, जहां उन्होंने रोजमर्रा के कामकाज, मार्केटिंग और अकाउंट संभालते हुए ऑलराउंडर के रूप में महारत हासिल कर ली. तभी उन्होंने एकला चलने का फैसला लिया. अपनी बचत का पैसा लगाकर और परिवार का सोना गिरवी रखकर 2019 में उन्होंने ईकोपार्क की स्थापना की और पैकेजिंग सामग्री का व्यापार करने लगे. अगले ही साल कोविड की वजह से उनका कारोबार मंदा पड़ गया मगर एक नॉन-प्रॉफिट ट्रस्ट से 11 लाख रुपए की कार्यशील पूंजी कर्ज के रूप में मिल गई. महामारी के बाद के दौर में उनका कारोबार चमक उठा और हिंदुस्तान लीवर के रूप में उन्हें एक बड़ा ग्राहक मिल गया. इस कामयाबी के साथ उन्होंने एक नया उद्यम शुरू किया जिसमें उनके खेत के गन्नों से रसायन- मुक्त गुड़ बनाया जाता है. अब वे दूसरे किसानों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, इस उम्मीद में कि उनका गृहनगर जालना प्रसंस्करण केंद्र बनकर उभरे. उधर, उत्तरी छत्तीसगढ़ में जशपुर के आदिम जंगलों में पूर्व जिलाधिकारी रवि मिîाल की पहल पर आदिवासियों का एक समूह वन उपज को कई सारे ऑर्गेनिक उत्पादों में तद्ब्रदील कर रहा है. इस पहल से जय जंगल फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी बनी जिसका मकसद महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के ब्रांड की मदद करना और उनके सामान को जशप्योर लेबल के तहत बेचना था. उन उत्पादों में महुए से तैयार किए गए तरह-तरह के उत्पाद शामिल हैं. इस इलाके में खूब पाए जाने वाले महुए के पेड़ में कई औषधीय गुण हैं जिन्हें वे रसायन, ऐडिटिव या मिलावटी पदार्थों का इस्तेमाल किए बिना संजोते हैं. इनमें महुआ के फूल का रस भी है जो शहद के विकल्प का काम करता है. कंपनी का सालाना टर्नओवर अब 60 लाख रुपए है, जिससे इन महिलाओं के हाथ में काफी पैसा होता है और आर्थिक स्वतंत्रता के साथ उन्हें सशक्त बनाता है. जीवनरेखा दरअसल, देश भर में 6.6 करोड़ से ज्यादा सूक्ष्म इकाइयों के साथ अब इन उद्यमियों की माइक्रो या सूक्ष्म, लघु

पहाड़ों से उतरा सौंदर्य प्रसाधन

सिक्किम की पहाड़ी झीलें झक नीले आसमान और बर्फ से ढके पहाड़ों की स्वच्छ छवि अपने पानी में उतारती हैं. हर कतरे से मंडराती धुंध और जब-तब होती बारिश के बीच जंगली जड़ी-बूटियों तथा पहाड़ी फूलों की खुशबू तैरती रहती है. ये जड़ी-बूटियां वहां के समाज में घरेलू स्किन केयर उत्पादों के नुस्खों का स्रोत हैं. ऐसी महकती जमीन में 45 वर्षीया रिनजिंग चोडेन भूटिया ने ऐसी मुहिम शुरू की जिससे उनकी और सैकड़ों महिलाओं की जिंदगी बदल गई. पहाड़ों में पलीं-बढ़ीं और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों से गहरे जुड़ीं रिनजिंग ने दिल्ली की अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ दी और अपने समाज की पारंपरिक जड़ी-बूटियों से कुछ सार्थक बनाने की इच्छा के साथ सिक्किम लौट आईं. उन्होंने शुरुआत 2019 में अपने पति के गांव कबी में एक स्थायी होमस्टे परियोजना के रूप में की. यह जल्द नई मुहिम में बदल गया. असल में रिनजिंग ने पश्चिम बंगाल में एक योग शिविर में ऑर्गेनिक साबुन और अन्य उत्पाद बनाने का कोर्स किया. उस अनुभव से उनमें एक चिनगारी उठी. मगर लक्ष्य था राज्य में गरीब महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना. शुरुआत में रिनजिंग ने देसी जड़ी-बूटियों से साबुन बनाना शुरू किया. उन्होंने महिलाओं के एक छोटे समूह को प्रशिक्षण दिया और अगापी नाम का यह उद्यम गंगतोक में आकार लेने लगा. यह छोटी-सी कोशिश थी मगर उसमें शामिल लोगों में जबरदस्त जोश था. उनका नया कारोबार लगातार बढ़ रहा था कि तभी कोविड महामारी शुरू हो गई. उससे उनका होमस्टे दो साल के लिए थम गया. इससे उन्हें नई प्रक्रियाओं और उत्पादों को तलाशने तथा अगापी को विकसित करने का वक्त मिल गया. रिनजिंग याद करती हैं, मैंने अपनी रसोई से शुरुआत की. फिर एक स्टुडियो बनाया. अब सिक्किम में हमारी एक उत्पादन इकाई है. उनकी 45 वर्षीया सहेली वर्षा श्रेष्ठ भी 2022 में इस उद्यम में शामिल हुईं और रिनजिंग ने ट्राटेंग ग्रीन्स प्राइवेट लि. की स्थापना की तो वे 2023 में उसकी सहसंस्थापक बनीं. अगापी उसी का अंग है. इसी दौरान अगापी ने जापानी सामाजिक प्रभाव निवेशक अरुन (एआरयूएन) सीड के सीएसआर चुनौती में हिस्सा लिया. अगापी जीत तो नहीं पाई मगर बाद में उसकी अध्यक्ष सातोको कोनो ने रिनजिंग से संपर्क किया. रिनजिंग ने मौके का लाभ उठाया और उन्हें निवेश के लिए राजी किया. इससे अगापी को अप्रत्याशित रूप से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) मिला. इस उपल्ब्रिरध से पूर्वोत्तर में अन्य महिला उद्यमियों के लिए दरवाजे खुल गए. 2024-25 तक अगापी ब्रांड ने 50 लाख रुपए का कारोबार किया. हिमालय क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध सामग्री—नागमणि, बुरांश, सनई, गुड़हल, कॉफी, चाय, संतरे के छिलके वगैरह उपयोग करके अगापी अब पूर्वोत्तर में त्वचा की देखभाल का शुद्ध और टिकाऊ मानक बन गया है. इसके तेल क्लीनजिंग ऑयल, स्क्रब, लिप बाम, क्रीम, साबुन और बाथ सॉल्ट उत्पादों की पूरी शृंखला बनाते हैं. कबी में सिक्किम सरकार के साथ मिलकर रिनजिंग ने 2019 से महिलाओं को प्रशिक्षण देना शुरू किया. उनमें से कई ने खुद का उद्यम शुरू किया है. कुल मिलाकर उन्होंने 500 महिलाओं को प्रशिक्षित किया है. अगापी आइआइएम शिलांग और सिक्किम के कॉलेजों से प्रशिक्षुओं को लेता है और उन्हें छोटे-छोटे वजीफे देता है. रिनजिंग कहती हैं, अपना ज्ञान हम दूसरों के साथ साझा करें तो बदलाव ला सकते हैं. यही वजह है कि मैं प्रशिक्षुओं को प्रोत्साहित करती हूं. एक छोटे उद्यमी के रूप में मुझे सिक्किम सरकार से भी काफी सहयोग मिला. हाल में मणिपुर की एक प्रशिक्षु को वहां जातीय हिंसा के चरम के दौरान अगापी के पास सुरक्षित आश्रय मिला. अगापी के उत्पाद ऑनलाइन और सिक्किम के चुनिंदा आउटलेट्स पर बेचे जाते हैं. रिनजिंग और उनकी टीम अब गंगतोक में पहला अगापी फ्लैगशिप स्टोर बना रही है.

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