December 24, 2025
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उड़ा दिए होश
चार दिसंबर को दोपहर का वक्त था, बेंगलूरू के केंपेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सब कुछ अस्तव्यस्त हो चुका था. डिपार्चर बोर्ड रह-रहकर चमक रहे थे, फिर कुछ भी दिखना बंद हो गया. एअरलाइन काउंटर खाली पड़े थे, लोग हैरान-परेशान इधर-उधर भाग रहे थे. टर्मिनल पर सैकड़ों बैग जहां-तहां बिखरे पड़े थे, लावारिस और किसी दावेदार के बिना. यह नजारा किसी हवाई अड्डे के लिए परेशान करने वाला ही होता, फिर यह तो देश के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में से एक की बात है. 42 वर्षीय एनिमेशन डिजाइनर रितुपर्णा सरकार इस अफरा-तफरी के बीच भ्रमित खड़ी थीं, उनके हाथ में टिकट था, जो उन्होंने हफ्ते भर पहले बुक किया था. उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय एनिमेशन फेस्टिवल में मुंबई जाना था, जिसका आयोजन खुद उन्होंने ही किया. वे आयोजन से एक दिन पहले पहुंचना चाहती थीं. लेकिन हवाई अड्डे पर अराजकता फैल चुकी थी. वे कहती हैं, हालात रेलवे स्टेशन से भी बदतर थे. हर संभावित उड़ान का सामान वहीं पड़ा था. किसी को नहीं पता था कि वह किसका है. कोई भी देखने वाला नहीं था. एअरलाइन कर्मचारी कोई जवाब नहीं दे रहे थे. रितुपर्णा 14 घंटे तक फंसी रहीं. उन्हें अपने गंतव्य के लिए उड़ान नहीं मिली. दो दिन पहले भुवनेश्वर में बीसेक साल की उम्र के दो सॉफ्टवेयर इंजीनियर संगम दास और मेधा क्षीरसागर हवाई अड्डे पर बैठे बारबार घड़ी देख रहे थे. उन्हें उस रात कर्नाटक के हुबली में होने वाले अपनी शादी के रिसेप्शन में पहुंचना था, उनके इंडिगो विमान को सुबह ही उड़ान भरनी थी लेकिन लगातार लेट हो रही थी. रिश्तेदारों के अलावा करीब 700 मेहमान रिसेप्शन स्थल पर उनका इंतजार कर रहे थे. आखिरकार, एअरलाइन ने घोषणा की कि उनकी उड़ान रद्द कर दी गई है. उसके बाद युवा जोड़ा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपने रिसेप्शन में शामिल हुआ. पूर्वोत्तर में 50 वर्षीय स्कूल टीचर मंजुरी पालित 5 दिसंबर को गुवाहाटी एअरपोर्ट पर फंसी रहीं, उनके पति का शव कार्गो होल्ड में रखा था. उन्हें अंतिम संस्कार के लिए पार्थिव शरीर को कोलकाता ले जाना था. अस्पताल की क्लीयरेंस से लेकर स्थानीय अधिकारियों की अनुमति तक सारी कागजी कार्रवाई पूरी करने में खासी मशक्कत करनी पड़ी थी. लेकिन सुबह की उड़ान अटक गई. शव को सुरक्षित रखने के उपाय सिर्फ 48 घंटे तक ही कारगर रहते हैं. समय तेजी से बीतता जा रहा था. सरकार, दास, क्षीरसागर और पालित, सबने उस एअरलाइन से यात्रा करना चुना था जिसे देश में सबसे भरोसेमंद माना जाता रहा है. आखिरकार, इंडिगो ने समय की पाबंदी को वादे और फिर ऐसे बड़े ब्रांड में तब्दील कर दिया था जिसने उसे भारत की पसंदीदा बना दिया. यह देश की सबसे बड़ी एअरलाइन भी बन गई, जिसका घरेलू उड़ानों के 60 फीसद से ज्यादा बाजार पर कब्जा रहा है. मौजूदा संकट गहराने से पहले, यह 400 से ज्यादा विमानों का बेड़ा
दम घोंटती हवा
हवा कैसे खराब हुई, अब दिल्ली वाले सब कुछ जानते हैं. जहरीला प्रदूषण कई स्तरों और परतों का अभिशाप है. गाड़ियों और उद्योगों से निकलने वाला धुआं, निर्माण गतिविधियों की धूल, कचरा जलाना और हर सर्दी में पंजाबहरियाणा के खेतों में पराली जलाने से उठने वाला धुआं दम निकाल रहा है. देश के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी प्रदूषण के चपेट में आए और बताया कि नवंबर के आखिर में एक दिन 55 मिनट टहलने के बाद उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी. परेशान लोग आखिर इसके खिलाफ प्रदर्शन करने निकल पड़े. नवंबर में इंडिया गेट के लॉन में करीब 400 लोग जमा हुए. उनके हाथ में स्मॉग से आजादी के पोस्टर थे और नारा लगा रहे थे सांस लेकर ही मर रहे हैं. लेकिन पुलिस ने उन्हें ही पकड़ लिया और विरोध खत्म हो गया. सरकार ने अपनी तरफ से जीआरएपी (ग्रेडेड रेस्पॉन्स ऐक्शन प्लान) नियमों में बदलाव किया, ताकि पहले ही सख्त कार्रवाई शुरू की जा सके. एक महीने पहले 23 अक्तूबर को प्रधानमंत्री कार्यालय ने आठ केंद्रीय मंत्रालयों और पांच राज्यों के वरिष्ठ नौकरशाहों की आपात समीक्षा बैठक बुलाई. मौजूदा ऐक्शन प्लान सात साल पुराने प्रदूषण डेटा पर आधारित है, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रमुख सचिव पी.के. मिश्रा ने मौजूदा समय के उत्सर्जन को मापने और मुख्य सड़कों पर धूल नियंत्रण पर ध्यान देने का निर्देश दिया; और पुरानी गाड़ियों, नियमों का पालन न करने वाले उद्योगों और लैंडफिल तथा सड़क की धूल की सफाई पर भी जोर दिया. दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने 6 दिसंबर को वायु प्रदूषण कम करने के लिए रिटायर केंद्रीय पर्यावरण सचिव लीना नंदन की अगुआई में एक एक्सपर्ट ग्रुप बनाया. इस 11-सदस्यीय ग्रुप में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के रिटायर अधिकारी और आइआइटी के प्रोफेसर शामिल हैं. नंदन ने इंडिया टुडे को बताया कि इस ग्रुप को वैज्ञानिक समाधानों के साथ-साथ दूसरे कामों पर भी चर्चा करने और कई व्यावहारिक, लागू करने लायक सुझाव देने का काम सौंपा गया है. विडंबना यह है कि दिल्ली यह सब पहले भी देख- सुन चुकी है. पिछली आम आदमी पार्टी सरकार ने तो अपनी उपलब्धियों का ढोल खूब पीटा था. मसलन, कोयला संयंत्र बंद करना, उद्योगों को पाइप वाली प्राकृतिक गैस