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June 18, 2025

सपनों पर लगा पूर्णविराम

अमेरिकी शिक्षा संस्थानों के पवित्र गलियारों में बह रही सर्द बर्फीली हवाओं की लहर अनिश्चितता का ऐसा आलम पैदा कर रही है कि लाखों महत्वाकांक्षी अंतरराष्ट्रीय और खासकर भारत के छात्रों की उम्मीदें गहरे बर्फ में धंसती जा रही हैं. ट्रंप सरकार ने अचानक अपने लगातार कई अजीबोगरीब कदमों से दुनिया भर से प्रतिभाओं के स्वागत के लिए बिछी लाल कालीन खींचनी शुरू कर दी है. 27 मई को भारत समेत दुनिया भर के अमेरिकी दूतावासों में नए छात्र वीजा के लिए मुकर्रर तारीखों को स्थगित करने का फैसला किया गया. लिहाजा, अनगिनत युवा प्रतिभाओं को अधर में लटका दिया गया है. इसे वीजा की अर्जी देने वालों की सोशल मीडिया गतिविधियों की पड़ताल की जरूरत का हवाला देकर जायज ठहराया गया है लेकिन यह सिर्फ पड़ताल की प्रक्रिया का ही मामला नहीं, बल्कि बड़े बदलाव का संकेत है. अमेरिकी पढ़ाई के ईद-गिर्द अपने भविष्य की शिद्दत से योजना बनाने वाले भारतीय छात्रों का सपना अब नीतियों में अपारदर्शी और अजीबोगरीब बदलाव के माहौल में टूटने-बिखरने लगा है, जिससे कइयों के मन में सवाल घुमड़ने लगे हैं कि अमेरिका उनकी महत्वाकांक्षाओं के लिए सुरक्षित/स्थिर ठिकाना नहीं रह गया है या नहीं? नया माहौल जैसे-जैसे खुल रहा है, उसके नतीजे समझने के लिए सिर्फ आंकड़ों पर गौर करना ही काफी होगा. 2023-24 में अमेरिका में रिकॉर्ड 11.3 लाख अंतरराष्ट्रीय छात्रों की आमद हुई. उनमें भारतीय छात्रों की संख्या 3,31,602 या करीब 30 फीसद थी, जो पिछले वर्ष से 23 फीसद ज्यादा थी. अलबîाा, सियासी तनाव की वजह से चीन के छात्रों के दाखिले में 4 फीसदी की गिरावट आई. अधिकांश भारतीय छात्र एसटीईएम यानी साइंसटेक, इंजीनियरिंग, गणित विषय ही चुनते हैं. उस साल करीब 42.9 फीसद ने गणित और कंप्यूटर विज्ञान चुना और 24.5 फीसद ने इंजीनियरिंग. इन्हीं प्रतिभाओं के बूते अमेरिका के फलते-फूलते स्टार्ट-अप उद्योग की नींव रखी गई है. उसकी स्थापना में लगे लोगों के अपने देशों के आंकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन अनुमान है कि हर चार में से एक अमेरिकी अरब डॉलर मूल्य वाले स्टार्ट-अप की स्थापना किसी पूर्व अंतरराष्ट्रीय छात्र ने की है; इन्हीं आप्रवासियों ने अमेरिका की टॉप एआइ (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) कंपनियों में लगभग दो-तिहाई की सह-स्थापना भी की है. ट्रंप सरकार का यह फैसला इस मायने में और भी अबूझ है कि इससे अमेरिका को भारतीय छात्रों से पढ़ाई के मद में मिलने वाली भारी रकम का भी नुक्सान होने वाला है. ग्लोबल स्टूडेंट हाउसिंग मार्केटप्लेस यूनिवर्सिटी लिविंग की इंडियन स्टूडेंट मोबिलिटी रिपोर्ट 2023-24 के मुताबिक, भारतीय छात्रों के 2025 में अमेरिका में 17.4 अरब डॉलर खर्च करने का अनुमान है, जिसमें 10.1

बाड़े में खुले कॉलेजों ने किया बंटाढार

पाकिस्तान की सरहद से कुछ ही दूरी पर है जैसलमेर जिले का भणियाणा गांव. वर्ष 2020 में तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार ने गांव में सरकारी कॉलेज खोलने का ऐलान किया और उसी साल पोस्ट ऑफिस के दो जर्जर-खंडहर कमरों में यह कॉलेज शुरू कर दिया गया. पहले ही साल में 160 विद्यार्थियों को दाखिला भी मिल गया मगर उन्हें पढ़ाने के लिए न तो पर्याप्त शिक्षकों की व्यवस्था हुई और न ही क्लासरूम की. 2022 में इस कॉलेज का नाम भणियाणा के समाजसेवी खरताराम के नाम पर कर दिया गया मगर संसाधनों की स्थिति जस की तस रही. फिलहाल, कॉलेज में 350 विद्यार्थी हैं मगर उनके बैठने के लिए 50 टेबल-कुर्सी भी नहीं. न बिजली, पानी और शौचालय है और न ब्लैक बोर्ड. क्लासरूम की हालत ऐसी मानो कॉलेज खुलने के बाद से आजतक उनकी सफाई नहीं हुई. दिन ढलते ही परिसर नशाखोरों से आबाद हो जाता है. पिछले पांच माह में इंडिया टुडे की टीम दो बार इस कॉलेज में पहुंची मगर दोनों दफा कार्यालय और क्लासरूम पर ताला लगा मिला. यहां से करीब 600 किमी दूर टोंक जिले के दत्तवास कन्या कॉलेज की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है. गहलोत सरकार ने 2022 में जो 117 कॉलेज खोले थे उनमें टोंक जिले का दत्तवास कन्या महाविद्यालय भी एक था. राजधानी जयपुर से महज 60 किलोमीटर दूर इस कॉलेज तक पिछले तीन साल में कोई सुविधा नहीं पहुंच पाई. एक सहायक आचार्य के भरोसे और छोटे-से कमरे में यह डिग्री कॉलेज चल रहा है. कमरा भी सरकारी स्कूल का है जिसे कॉलेज का नाम दिया गया है. कॉलेज में भवन, शिक्षक और दूसरे संसाधनों की

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